फिल्म समीक्षा: एक बेहतरीन बायोपिक वार फ़िल्म है 'शेरशाह'

स्रोत : https://babafilmy.blogspot.com/

परमवीर चक्र विजेता अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन की आख़िरी लड़ाई कारगिल युद्ध की घटनाओं और कैप्टेन कि शहादत के पहले के आखिरी कोड नेम शेरशाह को मध्य रखकर बनाई गई फ़िल्म शेरशाह एक अच्छी बायोपिक फिल्म है । करन जौहर के धर्मा प्रोडक्शन और विष्णुवर्धन के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में कुछ दृश्यों और संवादों को छोड़ दें तो फ़िल्म आपको बोर नहीं करेगी । फ़िल्म में रोमांस, युद्ध कौशल, जिम्मेवारी , लड़कपन और युवावस्था के अल्पकालिक भटकाव को भी निर्देशक ने बख़ूबी सामंजस्य के साथ एक सूत्र में पिरोया है । अधिकांशतः पंजाबी परिवेश के बीच बनी फ़िल्म के गीत संगीत भी एक क्लास तक सही लगते हैं , और कहीं किसी गीत से आपको यह नहीं लगता है कि फ़िल्म आपको कहीं भटकने देगी । 


फ़िल्म की कहानी शुरू होती है विक्रम के बचपन से जहाँ वो गली में क्रिकेट खेलते समय अपने से अधिक उम्र के लड़के से लड़कर अपनी गेंद वापस ले आता है, और यह कहता है कि ये मेरी चीज है और इसे लिए बगैर मैं नही जाऊंगा । और यह बचपन वाला विक्रम अपने स्कूल के भी हर त्योहार में बाकी छात्रों से अलग सैनिक वर्दी पहनकर जाता है क्योंकि उसे शुरू से ही सेना में जाने का ख़्वाब होता है । निर्देशक ने यह कंटेंट शायद इसीलिए फ़िल्म में रखा होगा ताकि जिसके सहारे फ़िल्म में कैप्टन के इरादे साफ व स्पस्ट हो सकें । वहीं जब विक्रम अपनी किशोरावस्था में पहुंचते हैं तो उनकी मुलाकात कॉलेज में जब डिम्पल ( कियारा आडवाणी ) से होती है , उस मुलाकात में डिम्पल के पिताजी इन दोनों की शादी से इसलिए इनकार कर देते हैं कि लड़का फौज की नौकरी करने वाला है, फिर विक्रम कुछ पल के लिए भटक कर मर्चेंट नेवी जॉइन करने पर विचार करने लगता है, वहीं उसका दोस्त उसे समझाता है । 


बेहतरीन जज्बे और संघर्ष के प्रति अपनी जिम्मेवारी समझने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा ने फ़िल्म में यह दिखाया है कि यदि सेना के जवान कुछ करने की ठान ले तो उनके लिए अदम्य साहस और पराक्रम से उसे पा अवश्य लेते हैं । 21 वर्ष की आयु में सेना जॉइन किए हुए लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा 24 साल की उम्र में ही सेना के सर्वोच्च सम्मान से भी मरणोपरांत सुशोभित हुए । थोड़ी ठहर ठहर कर चलती हुई फ़िल्म एक समय के बाद पुनः रफ़्तार पकड़ती है और लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा को एक इंटेल मिलती है कि इलाके का मोस्ट वांटेड आतंकी हैदर छुपा हुआ है, उसको मारकर लेफ्टिनेंट कंपनी के ऑपरेशन को लीड करने लगते हैं । फिर आखिरी मिशन भारतीय सीमा क्षेत्र की मिलिट्री प्वाइंट 5140 पर पाकिस्तानियों के कब्ज़े की ख़बर मिलती है , इस मिशन को लेफ्टिनेंट बत्रा लीड कर मुक्त कराते हैं और इस उपलब्द्धि के लिए युद्ध के बीच मे ही उन्हें लेफ्टिनेंट से कैप्टन का प्रोमोशन मिलता है और अब आखिरी मिलिट्री प्वाइंट 4875 को मुक्त कराने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा अपने ऊपर ले लेते हैं , क्योंकि इनका एक फिनिशिंग कोड इन्होंने खुद ही बनाया हुआ था कि "ये दिल मांगे मोर" । इसी लड़ाई के दौरान एक पाकिस्तानी कहता है कि हमें माधुरी दीक्षित दे दो, जवाब में कैप्टन कहते हैं कि वो तो अभी दुसरी शूटिंग में बिजी हैं फिलहाल तुझे हमसे काम चलाना होग़ज़ और उस पोस्ट को फतह करते हुए उस पाकिस्तानी के सीने में गोली मारते समय कैप्टन कहते हैं कि ये ले माधुरी दीक्षित का तोहफा ।  प्वाइंट 5140 को मुक्त कराने के बाद इनको रेस्ट करने को कहा गया लेकिन कैप्टन बत्रा ने कहा कि प्वाइंट 4875 को मुक्त कराए बिना चैन नहीं पड़ेगा । वो भी ये जानते थे कि प्वाइंट 4875 को पाकिस्तानियों के चंगुल से मुक्त कराने का मतलब है कारगिल युद्ध मे भारत की विजय । और यही प्वाइंट फ़तह करते हुए कैप्टन विजय बत्रा शहादत को गले लगा लेते हैं । 


फ़िल्म में अभिनय की बात करें तो कैप्टन बत्रा के किरदार में सिद्धार्थ मल्होत्रा फिट बैठते हैं । लेकिन इस किरदार के और अधिक इम्पैक्टफुल होने के लिए यदि वे अपना वजन थोड़ा कम कर लेते तो और बेहतर हो सकता था। क्योंकि इसके पहले सिद्धार्थ मल्होत्रा निर्माता निर्देशक नीरज पाण्डेय निर्देशित फ़िल्म अय्यारी में भी एक युवा फौजी का किरदार निभा चुके हैं । इसलिए सिद्धार्थ की वो फिटनेस लेबल फ़िल्म शेरशाह में नहीं दिखी । डिम्पल चीमा के किरदार में कियारा आडवाणी एकद्दम परफैक्ट लगीं। एक भरपूर पंजाबी लड़की का किरदार बेहतरीन संजीदगी के साथ कियारा ने निभाया है, उनका यह डायलॉग काफी इंप्रेसिव लगा कि यदि मैं विक्रम की नही हुई तो किसी और से शादी नहीं करूंगी। हालांकि यह संवाद भले ही पंजाबी में बोला गया हो लेकिन इसका इम्पैक्ट हर दर्शक को बख़ूबी समझ मे आएगा । वहीं विक्रम का डायलॉग भी काफी अच्छा लगा कि चार साल में भले ही चालीस दिन तुम्हारे साथ नहीं रह पाया लेकिन अब तेरे साथ अगले 40 साल तक रहूंगा ।फ़िल्म में निकेतन धीर के किरदार को थोड़ा और स्पेस देना चाहिए था, जबकि साहिल वैद्य के लिए भी कुछ खास करने को नहीं दिखा । फिर भी इन चरित्र में छोटे से ही सही सहायक किरदारों ने फ़िल्म में बेहतरीन काम किया है ।

                        

अब चूंकि फ़िल्म में लव ड्रामा एक्शन सबकुछ है तो इमोशन का होना भी स्वाभाविक है, फ़िल्म के निर्देशक ने इस कड़ी को बेहतरीन तरीके से फिल्माया है और हर किसी को फ़िल्म के कुछ दृश्यों में ग़मगीन होने को मजबूर किया है । यदि अपने देश के किसी फौजी को सीमा पर शहीद होते हुए देखकर भी आपकी आंखें नहीं पसिजती तो यकीन मानिए आप इंसान नहीं हो सकते । फ़िल्म का निर्देशन भी काटने योग्य नहीं है । कुछ प्रिडेक्टिबल सीन अवश्य हैं, पर आप इतना ध्यान रखें की यह फ़िल्म एक बायोपिक है । और हर हिंदुस्तानी जो कैप्टन की वीरता के बारे में पढ़ चुका है या जनता है उसे ये सीन देखने के बाद कोई आश्चर्य नहीं होगा । फ़िल्म के गीत संगीत में पंजाबियों का बोलबाला अधिक है, या यूं कहें तो उनकी ही पृष्टभूमि है । फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी में वार सीन फिल्माने में थोड़ा जर्क तो है लेकिन वो टेक्निकल बातें आम इंसान नहीं देखता । कुल मिलाकर यह एक अच्छी बायोपिक फ़िल्म आमेजन प्राइम पर आई है । जिसे इन आज़ादी के 74 वें महोत्सव पर भरपूर उमंग के साथ सपरिवार देखा जा सकता है । फ़िल्म एक तरफ जहां युवाओं को सेना के प्रति आकर्षित करेगी वहीं लवबर्ड्स को भी यह संदेश देगी की प्यार सिर्फ़ नजदीकियों का मोहताज नहीं रहता । पाताललोक और बेहतरीन वेबसिरिज पंचायत के बाद पहली बार बड़े कैनवास की फ़िल्म शेरशाह निश्चित ही आमेजन प्राइम को ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म की दुनिया मे इंडोर्स करेगी । 

फ़िल्म को मेरे तरफ से ⭐⭐⭐⭐

                                                             -------अभिषेक तिवारी 


 

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