इस ''चेहरे'' में नज़र नहीं टिकती , नज़ारे कोई क्यों देखे ?

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कहने के लिए चेहरे एक मिस्ट्री थ्रिलर फिल्म है, जिसमें फ़िल्म देखते समय कोई भी थ्रिल नहीं दिखाई दिया । और मिस्ट्री तो वैसे ही है जैसे आप घर से दुकान कुछ समान खरीदने जा रहे हों और दुकान पहुंचकर पता चले कि आप पर्स भूल आये। फ़िल्म चेहरे का निर्देशन जाने माने लेखक निर्देशक रूमी जाफरी ने किया है ।  इस फ़िल्म चेहरे का निर्माण आनंद पंडित मोशन पिक्चर्स और सरस्वती एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने किया है, जिसमें एक लम्बे अंतराल के बाद अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी मुख्य भूमिका में हैं । 


कोविड प्रोटोकॉल के दरम्यान शूट हुई आनंद पंडित प्रोडक्शन की अमिताभ बच्चन, अनु कपूर , इमरान हाशमी , रिया चक्रवर्ती और क्रिस्टल डिसूजा अभिनीत एक और फ़िल्म चेहरे पिछले 27 अगस्त को थियेटर में रिलीज़ हुई । दरअसल लम्बे अरसे के बाद थियेटर खुले हैं और ऐसे में बहुतेरी फिल्में अब थियेटर में रिलीज होने को तैयार हैं , इसी सिलसिले में बेल बॉटम के बाद यह फ़िल्म चेहरे भी थियेटर में रिलीज हुई । चेहरे को यदि फ़िल्म ना बनाकर और इनमें बेहतर ट्रीटमेंट के साथ वेबसिरिज बनाई गई होती तो यह वेबसिरिज के रूप में सफल हो सकती थी । लेकिन स्लो स्क्रीनप्ले और प्रिडिक्टिबल सीन्स की वजहों से एक छोटी सी कहानी बेहतर फ़िल्म नहीं बन पाई । दरअसल इस फ़िल्म के निर्देशक रूमी जाफ़री यह समझ ही नहीं पाए होंगे कि वे फ़िल्म बना रहे हैं या वेबसिरिज । क्योंकि इसकी प्लॉटिंग पूरी तरह से बिखरी हुई है । और कुछ कैरेक्टर्स का इसमें रखना और दिखाई देना भी समझ से परे है । अब जब फ़िल्म की प्लॉटिंग ही बेदम हो तो फ़िल्म की बोझ को सवा दो घण्टे झेलना सबके बस की बात नहीं है । 

 

 फ़िल्म चेहरे की कहानी यही है कि एक एड एजेंसी के मालिक जी एस ओसवाल ( समीर सोनी ) की पत्नी नताशा ओसवाल ( क्रिस्टल डिसूजा ) ने अपनी ही एड एजेंसी के एक कर्मचारी समीर मेहरा ( इमरान हाशमी ) के साथ मिलकर अपने पति को जान से मार देती है । यह बात समीर को तब शॉक करती है जब जी एस ओसवाल की हत्या के बाद नताशा अपने एक अंग्रेज प्रेमी के साथ एक महीने बाद समीर को मिलती है । समीर उसे ब्लैकमेल करता है , और उसी ब्लैकमेल में मिलने वाली रकम को लेने जाने के क्रम में एक ऐसी सोसायटी में फंस जाता है जहाँ पर एक रिटायर्ड जज, दो रिटायर्ड वकील , एक रिटायर्ड जल्लाद और एक बलात्कार पीड़िता लड़की और उसका भाई रहते हैं । यह एक हिल स्टेशन है । यहीं पर एक क्षद्म कोर्ट रूम बनांकर यह क्षद्म न्यायविदों की टीम हर आने जाने वाले लोगों के ऊपर मुकदमा चलाती है । इसी टीम के एक केस में समीर मेहरा फंस जाते हैं । कहानी तो अच्छी थी , लेकिन इसका बेहतर प्रस्तुतीकरण नहीं हो पाया । 

                              

अभिनय की बात करें तो पब्लिक प्रोसिक्यूटर लतीफ़ ज़ैदी की भूमिका में अमिताभ बच्चन ने इन फ़िल्म में जमकर ओवरएक्टिंग का पहाड़ खड़ा किया है । इससे पहले इनकी वकील के रूप में फ़िल्म पिंक आई थी जो काफी इम्प्रेसिव थी । इस फ़िल्म में उन्होंने इंट्रो सीन के अलावा कुछ भी बेहतर नहीं किया है । समीर मेहरा के रूप में इमरान हाशमी ने ठीक ठाक यानी कि एवरेज काम किया है । शायद कैमरे से दूर रहने का परिणाम हो या फिर उनके मनमुताबिक चुम्बन और इंटिमेसी से भरपूर स्क्रिप्ट नहीं मिलने की कसक में वे अपना बेहतर नहीं दे पाए । फ़िल्म की अभिनेत्रियों में से एक क्रिस्टल डिसूजा की यह पहली फ़िल्म है । क्रिस्टल ने अपने अभिनय कार्य की शुरुआत एकता कपूर के टीवी धारावाहिक कहीं ना कहीं के द्वारा किया था। कहीं ना कहीं के बाद क्रिस्टल कुछ और सीरियल में काम करने के बाद पहली बार बड़े स्क्रीन पर आई हैं , और उन्होंने बेहतर काम किया है । क्रिस्टल को देखकर आपको यह नहीं लगेगा कि आपके सामने एक नई अभिनेत्री पहली बार बड़े पर्दे पर आई है । बेहद कम डायलॉग के साथ रिया चक्रवर्ती ने भी साधारण काम किया है । हां रिया के कुछ एक्सप्रेशन जानदार लगे , लेकिन एक समग्र फ़िल्म के रूप में देखा जाए तो यह नाकाफ़ी रहेगा । फ़िल्म में अनु कपूर ने भी कुछ ओवरएक्टिंग और कुछ बेहतर वकालत का मिलाजुला रोल प्ले किया है । वहीं जल्लाद के रूप में रघुवीर यादव की भूमिका कुछ समझ मे नहीं आई । 

                  

तकनीकी पक्ष को देखा जाए तो एक कमजोर पटकथा आधारित फिल्म चेहरे आपको अपनी ओर आकर्षित नहीं करती है, क्योंकि इसका बनावटीपन कहीं कहीं पर साफ साफ झलकने लगता है । निर्देशक ने कुछ विशेष करने की कोशिश ही नहीं किया , बल्कि जो स्क्रिप्ट को छाप सकते थे उन्होंने वही छापने भर का काम किया है । फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर साधारण से थोड़ा सा ऊपर है , लेकिन कोई भी गीत संगीत ऐसा नहीं है कि जुबाँ पर आसानी से आ सके । फ़िल्म की फोटोग्राफी अच्छी हुई है । 

        

ऑवरऑल यदि आप अमिताभ बच्चन के फैन है, या इमरान हाशमी को एक लंबे अंतराल के बाद फिल्मों में देखने की हसरत दिल मे पाले हुए हैं या फिर सुशांत सिंह राजपूत केस के बाद रिया चक्रवर्ती को देखना चाहते हैं तो आप एकबार फ़िल्म चेहरे को देख सकते हैं । अन्यथा आपके सवा दो घण्टे का समय बर्बाद ही होगा । 

मेरे तरफ से फ़िल्म चेहरे को 2.5🌟           

                                                                -अभिषेक तिवारी 


 

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