अभी जिंदा है इंदल सिंह,मेरे अजीज दोस्तो- अभिनेता इंदल सिंह
मायावी नगरी मुंबई भी बड़ी अजब गजब है। यहाँ जिंदा को मुर्दा और मुर्दे को जिंदा करने का बाजारी तिलस्म कब किसी जिंदा इंसान को मुर्दा बताकर अपना उल्लू सीधा करने लगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रतिस्पर्धा तो होना अच्छी बात है लेकिन जब किसी जिंदा बेहतरीन अदाकार को अपनी रास्ते से हटाने के लिए, उसकी उपलब्धियों को दरकिनार करने के लिए उसे मृत घोषित कर देना और उसका दुष्प्रचार करना एक ऐसा गंदा धंधा है जो यहाँ हर रोज फलता फूलता है।चलिए मैं आज ऐसे ही एक जिंदादिल इंसान, कद्दावर अभिनेता, खुद्दार जमीर का बादशाह अपनी माँ और माटी को समर्पित फिल्मी सितारे से आपसे रूबरू करा रहा हूँ जिसने दर्जनों टीवी सीरियल में वर्षों काम किया बड़ी- बड़ी फिल्में कीं जानेमाने फिल्म निर्माता निर्देशक श्याम बेनेगल जैसे बड़े डायरेक्टर के साथ काम किया। आज वही हरफनमौला कलाकार, अभिनेता अपने को जिंदा सिद्ध करने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। फिल्मी दुनिया के कुछ ईर्ष्यालु कलाकारों ने पूरी फिल्म इंडस्ट्री में यह अफवाह फैलादी है कि ,"इंदल सिंह तो मर चुका है" अब जो आदमी काम की तलाश में यहाँ-वहाँ आ जा रहा है वह इंदल सिंह का डुप्लीकेट है।मगर सच तो सच होता है। सच को उजागर होना में बहुत वक्त लगता है। बहुतेरीं जद्दोजहदें करनीं पड़ती हैं। सत्य के चारों ओर जो वीभत्स भयानक अंधेरे घिरे होते हैं उन्हें हटाकर उनके बीच में रोशनी बिखरना बहुत मुश्किल होता है। कठिन होता है लेकिन असंभव कदापि नही, सूरज तो सूरज है! चाहे जितने चाहे जितने राहु केतु उसके ऊपर हमले करें। ताकतवर विकराल बादलों के बवंडर उसे ढकलें किन्तु सूरज को नेस्तनाबूद नहीं कर सकते। सत्य का सूरज झूठ के लुभावने आडंबरों को धता बताकर अपनी न ई के साथ फिर से आसमान में चमकने लगता है।इंदल सिंह इसलिए बीते 30 सालों से मुंबई की चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया में बतौर अभिनेता काम कर रहे हैं। इंदल सिंह के फिल्मी कैरियर की खुशनुमा जिंदगी पर तनिक नजर डालें तो वह दूर-दूर तक रोशनी देती हुई दिखाई देती है। इंदल सिंह की फिल्म क्षेत्र की इस चमकदार रोशनी में हम प्रख्यात फिल्मकार श्याम बेनेगल की फिल्म "समर", शंकर की "नायक",हंसल मेहता की "दिल पर मत ले यार", गुड्डू धनवा की 'शहीद', रजत नैयर की 'सिर्फ', योगेश भारद्वाज की 'सरगना',विवेक अग्निहोत्री की "बुद्धा इन ए ट्रेफिक जाम","ज़िद"तथा "नेहो" फिल्मों में इंदल सिंह ने अपने अभिनय से फिल्म इंड्स्ट्री के अलावा दर्शकों को प्रभावित किया है। इंदल सिंह ने तमाम टीवी सीरियलों के माध्यम से भी अपनी पहचान बनाई है। जिनमें कुंती सीरियल में प्रमुख किरदार के रूप में हिम्मत के रूप में तथा "जीना मुश्किल है", तथा "रिश्ते" सीरियल में फिल्म डायरेक्टर गुलशन कुमार की बेटी खुशाली के साथ हीरो की भूमिका में अभिनय करना शामिल है।इंदल सिंह के फिल्मी कैरियर का यह जो खुशनुम सफरनामा है वह खुद इंदल सिंह का ईजाद किया हुआ है। यह उनका स्वयं का खोदा हुआ मीठे पानी का कुआँ है जिसे उन्होंने अपनी कठिन मेहनत से, अपनी प्रतिभा एवं लगन से इस कुआँ से पानी निकाल कर लोगों को पिलाकर संतुष्ट किया है।आज वही फिल्म कलाकार ,अभिनेता बुंदेलखण्ड के सुरीलों के गाँव क्योलारी(जालौन) की माटी का यह नायाब नगीना इंदल सिंह अपने जिंदा होने का सबूत लिए घूम रहा है।और फिल्मी दुनिया के कुछ सयाने लोग उसे असली इंदल सिंह मानने से इंकार कर रहे हैं।आप क्या सोचते हैं मुझे पता नहीं... मगर मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि इंदल सिंह जैसे कलाकार कभी मरते नहीं हैं। न अफवाहों से और न किसी के मारने से मरते हैं। मैं इंदल को उसको जन्म से ही जानता हूँ। वह अपनी तरह का अलहदा अलमस्त कलाकार है। मुझे याद है सन 1990 के दशक में जब इंदल सिंह.ने बाल्यावस्था पार करके तरुणाई की देहरी पर अपना पहला पैर रखा था।अभिनय की दुनिया में कदम रखने को बेताब था। जब पहली बार बड़े मंच पर, बड़े रंगमंच पर, बड़े थिएटर पर उसने "शहीद" का एकल अभिनय भूमिका में अपनी अदाकारी से लोगों का दिल जीत लिया था। तब से लेकर आज तक इंदल ने फिल्मों तथा सीरियलों जिस किरदार को जिया तो उसे लाजवाब बनाया। वक्त के सितारे अक्सर कभी तेज चमकते हैं तो कभी मध्यम। तारों का टिमटिमाना , टूट कर गिर जाना, फिर चमक बिखेरते हुए आकाश में एक नई रोशनी बिखेरने का जो सिलसिला है यह हर आदमी को उसकी जिंदगी के साथ एक खूबसूरत तोहफा कुदरत से मिला है। इंसानी दुनिया में ही तमाम शैतानों का भी डेरा है जो हर नेकनामी को दागदार बनाने की तिकड़म करते हैं और कुछ समय के लिए सफल भी हो जाते हैं। मगर जो इंसान या कलाकार अपनी खुद्दारी से जीते हुए कलाओं के द्वारा सामाजिक सरोकारों की पैरवी करता है वह कभी मरता ही नहीं है।
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